Wednesday, 10 December 2008

नो का आदर्श

महांकाल
आदिकवि ने शुरू की ,वंदना महाकाल की

अहसास से हृदय भरा ,कूंच व्यथा तत्काल की

समय बिता शुरू हुआ ,अर्चन कालिदास का

भावः विव्हल श्रृंगार था ,महाकाल विन्यास का

कनिष्ठिका आसीन था,महाकाल का ये दास

माँ काली का वरद था , महाकवि कालिदास

काल गणना के दूर में , कवि सुमन भी आ गए

शिव मंगल में हो अर्पित ,कलि काल में समां गए

महाकाल का एक पल प्रचलित हे अविकल

गिनती करके चूक गए ,फिर भी जारी हे हलचल

इस गणना में आ रहा ,नव वर्ष भावः विभोर

नव नो की नवीनता से,मंगल मये चित चोर.

Tuesday, 9 December 2008