मानव हमेशा यह इच्छा रखता हे की में किसी के दुःख में काम आ सकू ।
किंतु आज इस सोच की कमी महसूस होती हे क्योकि मानव आज किसी से
भी ,विनम्रता से बात तो कर नही पता हे क्या उम्मीद की जा सकती हे की वह
किसी के काम आ सकेगा ।
आज मानव अपने में जो बदलाव महसूस करता हे उसके लिए आज का वातावरण दोषी
ही लगता हे।
प्रेम एक ऐसा शब्द हे की किसीको भी अपने प्रति समर्पित कर सकता हे यदि मानव मानव से प्यार से
नही रह सकता हे तो वह इश्वेर से क्या प्रेम रख सकेगा /इश्वेर के प्रति झूठी आस्था दिखाकर क्या साबित करना
चाहता हे .क्योंकि सभी मानव सिर्फ़ धन ,वैभव के लालच में पड़ा हे क्या अपनी नियमित जररूत के अतरिक्त
धन सिर्फ़ और सिर्फ़ मानव की झूठी शान बढाने वाला रह गया हे
Sunday, 5 October 2008
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